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5 Jun 2025 · 1 min read

अपराधों में डूबा मन है।

अपराधों में डूबा मन है।
लक्ष्य सभी का केवल धन है।।

संवेदनहीन देखिए जन को।
और रक्त में लिपटे तन को।।

चीख शोर औ आह बची है।
अन्दर केवल डाह बची है।।

खुद ही खुद को लूट रहे हैं।
रिश्ते नाते टूट रहे हैं।।

✍️अरविन्द त्रिवेदी

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