अपराधों में डूबा मन है।
अपराधों में डूबा मन है।
लक्ष्य सभी का केवल धन है।।
संवेदनहीन देखिए जन को।
और रक्त में लिपटे तन को।।
चीख शोर औ आह बची है।
अन्दर केवल डाह बची है।।
खुद ही खुद को लूट रहे हैं।
रिश्ते नाते टूट रहे हैं।।
✍️अरविन्द त्रिवेदी