मुक्तक
मुक्तक
जब घिर जाएं दुख के बादल, क्यों सोचे तकदीर है
चलो उठो नापो यह धरती, कहती यही लकीर है
भोर सुहानी लिखे कहानी, हर दिन ही जवानी है
कहता जाता नभ में पंछी, उड़ते पंख समीर है।।
सूर्यकांत
मुक्तक
जब घिर जाएं दुख के बादल, क्यों सोचे तकदीर है
चलो उठो नापो यह धरती, कहती यही लकीर है
भोर सुहानी लिखे कहानी, हर दिन ही जवानी है
कहता जाता नभ में पंछी, उड़ते पंख समीर है।।
सूर्यकांत