मैं ऐसा क्यों लिख रहा हूँ
मैं ऐसा क्यों लिख रहा हूँ ,
यह तुमको भी मालूम है,
हाँ, मैं यहाँ तुम्हारा पता भी लिखता,
खास, मुझको तुम्हारी कुछ खबर होती,
तू सोच रही होगी,
कि मैंने तुम्हारा नाम क्यों नहीं लिखा,
इसलिए कि तुम्हारा नाम बदनाम नहीं हो।
मुझको खुशी है कि,
तुमको मंजिल का साहिल मिल गया,
और तुम्हारा नया सफर शुरू हो गया है,
मैं दुहा करता हूँ कि,
तू हमेशा आबाद रहे,
तुमको यह भी मालूम है कि,
मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ ,
क्योंकि वो लोग आज भी है,
जिन्होंने उन इबारतों को देखा था,
जिनको लिखा था मैंने खून से,
तुमको मनाने के लिए,
मेरी इस आवाज़ को वो जरूर समझेंगे।
मैं यह किसके लिए लिख रहा हूँ,
जुनून यह भी पैदा होता है,
कर दूँ खून अपने प्रेम का,
लेकिन मैं ऐसा भी तो नहीं कर सकता,
क्योंकि मेरा प्यार पवित्र है,
और अमर है मेरा प्रेम,
अगर मैंने इसको खत्म कर दिया तो,
कैसे रह सकेगा यह कल को जिन्दा,
खैर, मुझको तुमसे कोई शिकायत नहीं,
और तुम भी यही प्रार्थना करना,
कि तुमको आबाद देखने के लिए,
कल को मैं भी जिन्दा रहूँ।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)