अंदाज़ जीने का
ओह आकाश
तुमने धरती से प्यार किया है
और धरती
तुम्हारी नज़रें
टिकी हैं आकाश पर
तुम दोनों
जानते हो
मानते हो
क्या हो तुम एक दूसरे के लिए
तुम्हारा नाता जुड़ा है साथ साथ
एक ही प्रकृति
एक ही देवत्व
के प्रतीक हो तुम
परन्तु तुम्हारा नाता
आँसुओं से आगे
कभी नहीं बढ़ पाया
आकाश और धरती
दोनों ने
एक दूसरे से
महज़ जल ही पाया ।
——शशि महाजन