दोहा
दोहा
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कालचक्र का खेल है, नहीं होत आसान।
निसा दिवस होते नहीं, सदा ही एक समान।।
कभी दिवस होता बड़ा, कभी बड़ी हो रात।
राज कर्म ऐसे करो, सदा बड़ी हो बात।।
~राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)