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1 Jun 2025 · 1 min read

अधूरे अफ़साने :

अधूरे अफ़साने :

जाने कितने उजाले ज़िंदा हैं
मर जाने के बाद भी
भरे थे तुम ने जो
मेरी आरज़ूओं के दामन में
मेरे ख़्वाबों की दहलीज़ पर
वो आज भी रक़्स करते हैं
मेरी पलकों के किनारों पर

तारीक में डूबी हुई
वो अलसाई सी सहर
वो अब्र के बिस्तर पर
माहताब की
अंगड़ाइयों का कह्र
वो लम्स की गुफ़्तगू
महक रही है आज भी
दूर तलक
मेरे जिस्मो-जां की वादियों में

तुम थे
तो अंधेरों से मोहब्बत थी हमको
जुदा हो कर तुमसे
ग़ुम कर लिया है ख़ुद को
अंधेरों की क़बा में
आओ और ले जाओ
अपनी उल्फ़त की वो रिदा
सोये हैं जिसमें
ख़ामोश क़ुर्बतों के
अधूरे अफ़साने

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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