#साहित्यपीडिया_के_लिए
#साहित्यपीडिया_के_लिए
😞लेखकीय प्रतिक्रिया, प्रथम कृति पर।
(प्रणय प्रभात)
नमस्कार।
कृति की लेखकीय प्रति प्राप्त हुई। अवलोकन के बाद का तात्कालिक अनुभव लेखक नहीं, एक पाठक के रूप में साझा करना चाहता हूं। विदित हे कि कमियां स्वीकारना आपकी प्रवृत्ति में नहीं, तथापि मेरा कर्म मुझे करना ही है।
आवरण से मुद्रण तक लगभग सब ठीक है। बावजूद इसके साफ लगता है कि आपका काम आपके ऑटोमेटिक सिस्टम के अलावा किसी दक्ष व्यक्ति के हाथ में नहीं है। जो कम से कम प्रकाशक के रूप में प्रावधानों के पालन की स्थिति सुनिश्चित कर सके।
यह देश दुनिया की शायद अकेली किताब होनी, जिसमें आत्म कथ्य (भूमिका) सीधे हाथ के बजाय उल्टे हाथ के पृष्ठ से शुरू हुई है। जो देखने में भी अरुचिकर है। अनुक्रमणिका के बाद का पेज खाली छोड़ा जा सकता था, नहीं छोड़ा गया। जबकि आखिरी में पृष्ठ बेसबब खाली छोड़े गए हैं।
किस काम का ऐसा ऑटोमेटिक सिस्टम कि सब गुड गोबर कर दे और शर्मिंदा रचनाकार हो। लगता है आपने अन्य प्रकाशनों की कृतियां देखी नहीं।
याद रखिए, किसी कृति के साथ साख रचनाकार ही नहीं मुद्रक व प्रकाशक की भी जुड़ी होती है। मुझे बहुत खेद है कि संघर्षपूर्ण जीवन की पहली कृति गलत हाथों में सौंप दी। लग रहा है कि आपका मंच, आपके प्रयास, आपके प्रस्ताव केवल “आंख के अंधे, गांठ के पूरे” किस्म के नौसिखियों के लिए हैं। आपको बुरा लग रहा होगा, लगना चाहिए। बड़े आदेश का मन था, मर गया है। अब तो उनके आगे भी लज्जित हूं, जिनसे कृति मंगवाने का आग्रह किया। जवाब की जरूरत नहीं। अपने विद्वतापूर्ण तर्क अपने पास रखिए। वो और अधिक क्षोभ देने वाले होते हैं।