जिंदगी को गले से लगाया जाए
जिंदगी को गले से लगाया जाए
ग़म बांटकर चलो मुस्कुराया जाए।
अलग थलग पड़े हैं अपने आप में
दोस्तों को मिलने बुलाया जाए।
महफ़िल में छलके जवानी के ज़ाम
गीत भूला कोई गुनगुनाया जाए।
जिन घरों तक पहुंचती नही चाँदनी
हौसला जुगनुओं का बढ़ाया जाए।
पत्थरों की चौखट पे जो ना मिले कुछ
दिलों को मंदिर बनाया जाए।
बेटियां सृष्टि हैं उनकी रक्षा करो
बेटों को जनम से सिखाया जाए।
जा रही सरहदों पर जवानों की टोली
फूल राहों में चलकर बिछाया जाए।
‘विनीत’ नफरतों से नहीं कुछ हासिल
प्रेम के ही गीत हर घड़ी गाया जाए।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’