Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 May 2025 · 1 min read

नवनिधि क्षणिकाएँ---

नवनिधि क्षणिकाएँ—
29/05/2025

अस्वच्छ दर्पण में देखने से
धुले हुए चेहरे पर भी
गंदगी नजर आती है।

कहाँ टाँग रखा है ऊपर
मेरे नये दर्पण को
चेहरा दिखाई नहीं देता।

दर्पण बोलता है
मौन की भाषा से
सुनी है आवाज क्या तूने।

ये रखो तुम्हारा दर्पण
मैं अपने में ही खुश हूँ
ये तो दिन रात रोता है।

सबसे पहले तो इंसान बनो
दर्पण बनने की कोशिश मत करो
ये पारदर्शी नहीं होता।

मेरी मूर्खता पर उसने कहा
आज से पहले क्या किसी ने
तुम्हें दर्पण नहीं दिखाया।

दर्पण बनने की जब-जब कोशिश की
मुझे तोड़ा गया बेदर्दी से
कई टुकड़ों पर जी रहा हूँ मैं।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
━━✧❂✧━━✧❂✧━━✧❂✧━━

Loading...