जिधर देखिए बस , नई आफ़ते हैं
ग़ज़ल
1,,,
जिधर देखिए बस , नई आफ़ते हैं ,
मिली जो न उनको , वही राहते हैं ।
2,,,
हवाओं से कह दो, न तूफ़ान लाएं ,
इधर गुरबतों के महल कांपते हैं ।
3,,,
समाया हुआ दिल में खौफ़-ए-क़हर भी ,
मगर किसकी बातों को हम जाँचते हैं ।
4,,,
समन्दर की लहरों ने सजदे किए जब ,
फ़लक झुक के बोला , इतर बांटते हैं ।
5,,,
कहाँ जा रही , बज़्मे – कोनैन आख़िर ,
कहो “नील” को लोग क्यूं रोकते हैं ।
✍️नील रूहानी,,,
( नीलोफर खान)