मेरे पापा
मेरे पापा
थक कर भी मुस्कुराते हैं
मेरी एक हँसी के लिए
हर दर्द छुपा जाते हैं।
वो मेरी छोटी सी जीत पर
खुशी से भर जाते हैं
और हार पर
मुझसे ज्यादा खुद को दोषी ठहराते हैं।
मेरे पापा
मुझमें हर खुशी ढूंढ़ते है
मेरी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं
कई बार डांट भी लगाते है
जब वो डांटते हैं मुझे
तो वो अंदर तक टूट जाते हैं
मुझे डांटने पर
मुझसे ज्यादा तकलीफ वो खुद पाते हैं।
खुद कपड़ों पर पैबंद लगा
फटी बनियान पहनकर
मुझे अच्छे कपड़ों में देखना चाहते हैं
मुझे अपने कंधे पर बिठाकर
पूरी दुनिया की सैर कराते हैं
पर कभी शिकायत नहीं करते
दुनिया की हर खुशी
मेरी झोली में ला सजाते हैं।
मेरे पापा
शब्दों में नहीं समाते
वो तो बस
हर दिन मेरा भविष्य सजाते हैं।
@ विक्रम सिंह