#अद्भुत_अकल्पनीय_घटना🎵
#अद्भुत_अकल्पनीय
*आख़िर किसने बजाया घंटा…?
*रहस्यपूर्ण घटना से उपजा प्रश्न।
(प्रणय प्रभात)
आस्था तर्क का नहीं विश्वास का विषय है। उसी विश्वास का, जो आए दिन प्रबल होता है। किसी न किसी घटना, सीख या संकेत से। लगता है कि वो आसपास ही है, जो अपना आभास कराती रहतीं है। हर युग की भांति इस कुत्सित व कलुषित युग में भी। आज आपको जो बताने जा रहा हूं, सौलह आना सच है। मानना न मानना आपकी इच्छा पर है। आपकी सोच व दृष्टिकोण पर भी। चार दिन पूर्व मेरी अपनी नगरी, मेरी अपनी बस्ती में जो हुआ वो बताता हूं आपको। ईश्वरीय अनुकम्पा व दैवीय प्रेरणा से।
शिवनगरी श्योपुर का पुराना उपक्षेत्र है पंडित पाड़ा। नगरी के वार्ड क्रमांक 03 का एक मोहल्ला। इसी मोहल्ले के मध्य में है गीता भवन, जो एक तिराहे पर स्थित है। गीता भवन के सामने का रास्ता छारबाग, अंधेर बावड़ी की ओर जाता है। इसी संकरे मार्ग पर दो घुमावों के बीच एक छोटा सा मंदिर है। छोटे से शिव परिवार से युक्त यह मंदिर हनुमान जी का है। जो “बाल मंडल” के हनुमान जी के नाम से चर्चित हैं। आज की चर्चा व चौंकाने वाली घटना का केंद्र यही मंदिर है।
दशकों तक वीरान सी गली का यह सुनसान सा मंदिर आज अपने अतीत से अलग है। समिति से जुड़े कुछेक भक्त परिवारों के प्रयास से मंदिर का कायाकल्प हो चुका है। उपासकों व दर्शनार्थियों की संख्या के साथ धार्मिक गतिविधियां बढ़ रही हैं। आयोजनों में भी भव्यता की वृद्धि हो गई है। समर्पित भाव से जुड़े कुछ भक्त युवाओं व चंद महिलाओं के सदप्रयासों से मंदिर पर सामूहिक सुंदर कांड पाठ का आयोजन आरंभ किया गया है। जो प्रति सप्ताह शनिवार की सांध्यवेला में आयोजित किया जाता है। आज की बात इसी आयोजन से जुड़ी हुई है। वो बात, जो आपको रोमांचित करेगी और चिंतन पर बाध्य भी।
बात पिछले शनिवार (24 मई) की रात की है। सुंदर कांड की सम्पन्नता के बाद चंद युवाओं को छोड़ कर शेष सब अपने घर लौट चुके थें। मंदिर के पट बंद कर द्वार पर ताला लगाया जा चुका था। प्रचंड गर्मी का आभास करने वाले युवा भक्त मंदिर में कूलर की आवश्यकता पर चर्चा कर रहे थे। उनका मानना था कि इस मारक गर्मी से बजरंग बली भी कष्ट का अनुभव करते होंगे। सोच संभवतः भक्ति की अद्वैत भावना से जुड़ी हुई थी। जिसके पीछे विग्रह पर चढ़ा भारी भरकम चोला भी था।
इससे पहले कि यह वार्ता आगे बढ़ती, मंदिर के अंदर लगा घंटा “टन्न” की ध्वनि के साथ बजा। बाहर खड़े सभी युवक इस गूंज से चौक पड़े। बंद मंदिर में बजे घंटे की ध्वनि एक दो ने नहीं, आधा दर्जन युवाओं ने एक साथ सुनी। ऐसे में इतना तो तय है कि यह कानों का भ्रम नहीं था। सभी भक्त एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। उनके रोम खड़े थे और वे लगभग अवाक सी स्थिति में थे। कुछ क्षणों के बाद स्वयं को संयत करते हुए एक ने ग्रिल के बाहर से हाथ डाल कर पर्दा थोड़ा सा सरकाया। झांक कर देखा तो अंदर कोई नहीं था।
प्रतीत हुआ कि भयावह गर्मी में ठंडक के लिए भक्तों के प्रस्ताव का अनुमोदन स्वयं बजरंगी ने ही कर दिया था। रहस्यपूर्ण रोमांच से सराबोर भक्त रात भर इस घटना से चमत्कृत बने रहे। अगले ही दिन पहला काम हनुमान जी महाराज का चोला बदलने का किया गया। इस बार प्रतिमा पर ऋतु अनुरूप हल्का व नर्म चोला चढ़ा दिया गया। इसके बाद एक शानदार कूलर लाकर श्री विग्रह के समक्ष स्थापित कर दिया गया। जिसने नौतपे में बायलर से दहकते परिवेश को शीतल बनाने का काम किया। नए चोले में सुसज्जित बाला जी की छवि बाल रूप में दृष्टिगत होने लगी।
घटना के प्रत्यक्षदर्शियों व अनुभवकर्ताओं ने आपबीती मंगलवार को अन्य भक्तों को रोमांचित होते हुए सुनाईं। इनमें हमारी श्रीमती जी भी सम्मिलित थीं। जो मंदिर समिति से जुड़ी हुई हैं व कार्यक्रमों से भी। श्रीमती जी से यह जानकारी मिलने के बाद मुझे कोई अचरज नहीं था। कारण है दैवीय शक्तियों सहित अपने आराध्य के अनन्य प्रिय व अपने परम सदगुरुदेव श्री हनुमंत बलवंत महाराज के चमत्कारों के प्रति अगाध श्रद्धा। ऐसे कई प्रसंगों के भुक्तभोगी व प्रत्यक्ष आभासी के रूप में।
बाबाकुछ आपके साथ साझा कर भी चुका हूं। कुछ प्रसंगवश आगे भी करता रहूंगा। क्यों न करूं, उस दिव्य शक्ति के प्रति, जिसने सतत् लेखन की शक्ति व सामर्थ्य दी है अंकिचन को। आपको विश्वास नहीं होगा, मगर सत्य अपने स्थान पर है। साक्षी एक बार फिर श्रीमती जी हैं। उक्त घटना पर आलेख मैने बीती रात ही लिख दिया। अंतिम दो पंक्तियां शेष थीं, कि मोबाइल धोखा दे गया और डेढ़ घंटे में लिखा हुआ सब क्षण मात्र में उड़ गया। लगा कि प्रभु नहीं चाहते थे कि कुछ लिखा जाए। कुछ देर की उग्रता के बाद व्यग्रता में रात कटी। सुबह जागने व स्नानादि से निवृत्त होने के बाद अंतःकरण से प्रेरणा आई कि लिखना चाहिए और लिख दिया। सारे काम एक किनारे पर रख कर। जय राम जी की। जय हनुमान जी महाराज की।।
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(मध्यप्रदेश)