चिट्ठी
वह कागज की चिट्ठी तो
जब-जब पास आती,
परदेश गए हुए व्यक्ति का
सन्देशा लिख लाती।
जब आती प्रियतम की पाती
तब वधुएँ शरमाती,
खैरियत की खबर सुन कर
तसल्ली मिल जाती।
बहुरूपिया सी लगती कोई
वेश बदलकर आती,
कभी हँसाती कभी रुलाती
कभी चुप कराती।
वो मन से मन का तार
जोड़ती चली जाती,
कभी वियोग कभी संयोग
सबके दर्शन कराती।
दूरदराज के गाँवों में भी
पते ढूँढ़ते आती,
घर-परिवार की खुशियाँ
कई गुनी बढ़ जाती।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
( साहित्य वाचस्पति )
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।