रात
रात
बसी है याद दिल में नींद को कहां आना है,
आंखों ही आंखों में रात को गुजर जाना है।
घनघोर कालिमा भरी रात ना बीते शायद,
उजाले पर बिछा अंधेरे का शामियाना है।
चांद भी आज शायद मेरे साथ साथ जागेगा,
रूठकर चांदनी को मायके में ठहर जाना है।
गांव की बारात अब आगे ना जा पाएगी,
सुना है तेरे गांव का यह मोहल्ला पुराना है।
तुम ना जाना पास के मैदान में अब घूमने,
जमीं पर सुना है कांटो भरा बिछौना है।
साथ मां बाप का दोबारा नहीं मिलता कभी,
बुला लो उन्हें आश्रम जिनका आशियाना है।
प्रेम और विश्वास की गंगा कभी ना रोकना,
पंचतत्व से उद्भव और वहीं सिमट जाना है।
परिंदे भी अब इस ओर रुख करते नहीं,
जानते हैं उस जगह बस जाल ही ठिकाना है।
रूठकर मुझसे कभी दूर तुम जाना नहीं,
दो दिलों की दूरियां तो मौत का बहाना है।
स्नेह ओ प्रेम का अहसास अब दिखता नहीं
मिले बैठे हुए चार यार को,गुजरा ज़माना है।
पैरों तले फूल को कभी रौंदना नहीं ‘प्रेम’,
कौन जाने ठौर उसका ईश का घराना है।
इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश
9425822488