द्रौपदी

अनुगीतिका 16-14 एवं 16-16 एक नया प्रयोग
अनुगीतिका
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भरी सभा के बीच राज जब, द्रुपद सुता आई होगी।
दुर्योधन के अधम कृत पर, सारी सभा लजाई होगी।।
मानवता के मानबिंदु भी, फूट-फूट रोऐ होंगे।
अधम दुष्ट पापी हाथों ने, जब निज पकड़ बनाई होगी।।
द्यूत खेल में निज नारी का, दाॅंव लगाना अनुचित था।
धर्मराज ने स्वयं धर्म से, कैसे आंख मिलाई होगी।।
दास धर्म क्या पति धर्म से, कहीं बड़ा हो जाता है।
पाॅंच-पाॅंच वीरों के होते, कैसे वह घबराई होगी।।
जहाॅं शक्तिरूपा नारी को, सदा निहारा जाता हो।
उसी सभा में अग्निहुता भी, कैसे गई सताई होगी।।
एक अबला के केस पकड़कर,नीच पतित जब लाया हो।
सदा पाप को धोने वाली, गंगा भी पछताई होगी।।
जहाॅं वीरता धर्म नीति ने, स्वयं मौन को धारा हो।
वहाॅं कृष्ण ने उस कृष्णा की, कैसे लाज बचाई होगी।।
~राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)