गांव और शहर

गांव के साथ-साथ
एक शहर से भी नाता पुराना हो गया है,
जाता हूं दूर जब भी उससे
वो भी याद बहुत आने लगा है।
पहले जहां मिट्टी की खुशबू
मन को छू जाती थी हर बार,
अब शहर की सड़कों से भी
मिल रहा है हमें वही प्यार।
खेतों की हरियाली नहीं है माना
गमलो में उगाए फूलों की ख़ुशबू तो मिलती है,
और मां की रसोई की खुशबू
माँ के आने पर शहर में भी खिलती है।
गांव की चौपाल,
जहां किस्से चलते थे रातभर,
अब कॉफी शॉप्स में
वो अपनापन दिखता है अक्सर।
माना कि बचपन की गलियों से
अब थोड़ी दूरी सी बन गई है,
लेकिन इस शहर की गलियों में
नई पहचान मिल गई है।
शहर ने दिए सपनों को पंख,
लेकिन जड़ें अब भी गांव में हैं,
वो आम का पेड़, वो दरख़्त बरगद का
मज़ा आज भी उनकी छांव में है।
शहर की चकाचौंध
जब भी आंखों को चुभती है,
तब तब गांव की शामें
मन में शांति भरती हैं।
ना गांव को भूल पाया हूं,
ना शहर को अपनाने में कमी है,
दोनों की मिट्टी से
मेरी किस्मत की लकीरें चमकी हैं।
गांव ने जीना सिखाया है तो
शहर ने लड़ना और पाना,
दोनों ने मुझे बनाया जो हूं मैं आज,
वो बस उन्हीं का है निशाना।
जब भी जाता हूं कहीं और
मन दोनों को साथ ले चलता है,
शहर की धड़कन और गांव की माटी का प्यार
अब मेरी सांसों में धड़कता है।
⸻