सत्य कहना - माधव मालती छंद
सत्य कहना – माधव मालती छंद
सत्य कहना आज मानो, जुल्म भारी हो गया है।
लोग लगता आज जैसे, खुद शिकारी हो गया है।।
नेह की गंभीरता भी, खत्म होती जा रही है।
मोह से नाते जहाँ हो, प्रेम खोती जा रही है।।
कोसते दिल खोलकर जो, वक्त रूठी जा रही है।
कर्म करने की घड़ी में, धर्म छूटी जा रही है।।
आँख पर चश्मा चढ़ा तो, सोंच रोती जा रही है।
द्वेष ऐसा बढ़ गया जो, बीज बोती जा रही है।।
सभ्यता का मोल भूला, भव्यता भी जा रही है।
नग्नता में हीं खुशी की, बोध होती जा रही है।।
रुग्ण लगते हैं सभी अब, दिव्यता भी जा रही है।
घोर कलयुग आ गया है, नैन पानी जा रही है।।
शिष्य को भूलें यहाँ हम, सर्वहित भी जा रही है।
काल सबसे पूछता है, खाल खींची जा रही है।।
लेखनी जो उठ गयी तो, रोष सारी जा रही है।
छोड़िए पाठक उसे अब, क्रोध प्यारी जा रही है।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978