खुदा न करें कि-------

खुदा न करें ———-,
कि नसीब नहीं हो यह चांद,
जिसका दीवाना है यह जग,
और ऐसा भी नहीं हो,
कि तुझे ही नजर नहीं आये,
तेरा यह चेहरा तेरा रोशनी में।
हे चांद, सच,
तू बहुत दूर है मेरी जमीं से,
अंतर है तेरी प्रकृति में,
और समय ने बदल दिया है दोनों को,
मगर इतना तो तू भी जानता है,
कभी करीब थे हम दोनों।
सुनाये थे हम दोनों ने,
एक दूजे को अपने दुःखड़े,
कभी बिताये थे हमने एक जगह,
हंस-झगड़कर अपने पल,
अगर मैं हूँ तुम्हारा दुश्मन,
तो चाहता हूँ इसीलिए।
अगर दोस्त हूँ तुम्हारा,
तो प्यार इसीलिए करता हूँ ,
तुम्हारी दौलत-महल से नहीं,
तुम्हारी सूरत- रूप से नहीं,
सिर्फ़ तुम्हारी खुशी से ही,
मैं प्यार करता हूँ,
तुम खुश-आबाद रहे,
मेरी दुहा यही है,
सोचो, साथ क्या जायेगा,
खुदा न करें कि ऐसा हो———–।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)