शिव जगत-गुरु हैं - सजल

शिव जगत-गुरु है – सजल
मात्रा भार – १६
समांत – अर
पदांत- है
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शिव हीं पालक, शिव हीं हर हैं।
शिव हीं कण-कण, विश्वंभर हैं।।
सकल जगत आधार यही है।
फिर भी कुछ को नहीं खबर है।।
शिव जगत- गुरु है, आदि-गुरु भी।
यही तो प्राणवायु प्रखर हैं।।
सृष्टि के ज्ञान आधार यही।
यही ध्वनि भी और अक्षर हैं।।
भक्ति भाव जो देखा इनको।
इस जग में उसको क्या डर है।।
शिव सत्य और सुंदर हरपल।
समय-चक्र शिव का रहवर है।।
इनकी अनुरक्ति- भक्ति कर लो।
बसे यही कैलाश शिखर हैं।।
ढूंढते हैं जाकर शिवाला।
मिलते यह उर के अंदर है।।
योग-भोग दोनों हीं सबको।
शिव ने सीख दिया भरकर है।।
गृहस्थी, संन्यास का संगम।
सिखलाया जो तेज प्रवर है।।
आदि, अनादि, अनामय यह तो।
अविनाशी शिव हीं शंकर हैं।।
दया, कृपा हम-सब पर करते।
गले लपेटें जो विषधर हैं।।
भक्ति- भाव से वंदन करते।
शिव पाठक के करुणाकर हैं।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978