प्रिय वत्स!

प्रिय वत्स!
तुम मन में हर पल रहते हो
बहुत मानता हूँ मैं तुम्हें
गलतियों पर टोकता हूँ ताकि
कोई और ना टोके
तुम्हें बुरा लगेगा
मेरी बातें तुम्हें बुरी भी लगती हैं
समझता हूँ
तुम अच्छे हो
देखने में
पर जब मैं पूरी तरह वृद्ध होकर
तुम पर निर्भर हो जाऊँगा
तभी तुम्हारी सुंदरता सामने आएगी
शायद गर्व भी कर सकूँ तुमपर
मेरे प्रिय वत्स!
–अनिल मिश्र