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10 May 2025 · 2 min read

बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -215 के श्रेष्ठ दोहे

* बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -215* दिनांक -10.5.2025

प्रदत्त शब्द-मड़वा/मड़बा (मंड़प)

प्राप्त प्रविष्ठियां :-
1-

चार-चार मड़वा सजे,छलके अति अनुराग।
चतुरानन भाँवर पढ़ें, धन्य जनक के भाग।।
***
-गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी
2
मड़वा तर हरदौल नें, चीकट धर दइ हाथ।
भेंट करी कुन्जावती, खूब निभाऔ साथ।
***
– रामानंद पाठक ‘नंद’, नैगुवां
3

भानेजन के ब्याव कौ,धरो बहिन नें कौल।।
पारस मड़वा के तरें,करें लला हरदौल।।
***
-भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”
4
नैंचें मड़बा बैठ कें,खाव कड़ी उर भात।
बरा मिला कें ख़ाव तौ,मजा भौत आ जात।।
***
– वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़
5
मड़वा मंगल हौत है , हरे बाँस से छाँय‌।
पत्ता डारे आम कै , कदली खम्ब बनाँय‌।।
***
-सुभाष सिंघई, जतारा

6 (द्वितीय स्थान प्राप्त दोहा)

मांग सजी सिन्दूर सें, चुरियन सजी कलाइ।
मडवा तर भांवर परी,बिटिया भई पराइ।।
***
– डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा
7
मड़वा चीकट के बिना, हरदम सूनो रात।
भाई के घर हर बहन, जाकैं माँगत भात।।
***
-अमर सिंह राय, नौगांव
8
मडवा की पंगत भई, बहु भांत जेवनार।
कड़ी- भात, बूरा-बरा, फुलका, घी उर दार।।
***
-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़

9 (तृतीय स्थान प्राप्त दोहा)

हरे बाँस मड़वा तरें, बिलखत बाप मताइ।
कात करेजौ फट रऔ,बिटिया करै बिदाइ।।
***
-एस.आर. ‘सरल,’,टीकमगढ़

10
मंडप गायब हो गये, भूल हैं संस्कार।
होटल में शादी करें, गारीं ना ज्यौनार।
***
-डॉ.अवधेश कुमार चंसौलिया,ग्वालियर
11
कुदरत के मड़वा तरैं,बैठे हैं जनी मान्स ।
नैंग-चारअच्छे बुरे,ल्यो जु नौनौ चान्स ।।
***
-शोभाराम दाँगी ‘इंदु’, नदनवारा
12-
दो अंजाने प्रेम सें,परिणय भांवर लेत।
बँधे गांठ मड़बा तरें,सात जनम के हेत।।
***
-आशा रिछारिया( निवाड़ी)
13
फूपा मड़वा गाड़बैं,फुआ गाड़तीं खाम।
बिनती करैं गनेश सैं,पूरन करियौ काम।।
***
-आशाराम वर्मा ‘नादान’,पृथ्वीपुर
14
मड़वा डारे आम तर, कैरी पनो पिलाँय।
स्वागत बै मनसैं करैं, मिलत हृदे हरषाँय।।
***
-श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा

15 (*प्रथम स्थान प्राप्त दोहा*)

आँगन में मड़वा डरो, हो रव मंगल काज,
मंत्र गूँज रय भीतरै, बजत बायरैं साज ।
***
-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल

16
मड़बा तरें बरात के,भय नोने सत्कार।
हरदी सेँ हाथेँ भिड़ा,दइँ लुगान ने मार।।
***
– प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़
17
दतिया सें जा ओरछा,दऔ कुंजा नैं कौल।
मड़बा के नींचे भरो,मरें भात हरदौल।।
***
– मूरत सिंह यादव, दतिया
18
हरसाये राजा जनक, मिथिला भई निहाल।
सियाराम मड़बा तरैं, ठाँड़े ले वरमाल।।
***
-विद्या चौहान, फरीदाबाद
19
मड़वा से वे हैं हलत,तन में नइयाँ जान।
दारू पी रय हूँक कें, कर घर वीरान।।
***
– अंजनीकुमार चतुर्वेदी, निबाड़ी
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©संयोजक -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
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