गोविंदगुरु के बाज हैं हम,

गोविंदगुरु के बाज हैं हम,
कृपाण हाथ में धारे हैं।
हम बुद्ध पूजते हैं मन से,
पर परशुराम भी प्यारे हैं।
रुद्राष्टक,शिवतांडव जपते,
ह्रदय में मेरे शिवाले हैं।
श्रीकृष्ण सारथी हैं मेरे,
हम गीता पढ़ने वाले हैं।
सर्वेसर्वे भवन्तु सुखिना कहते,
वसुधा कुटुंब सम मानते हैं।
लेकिन दुर्दांत सामने हो,
फिर प्रलय भी लाना जानते हैं।
काली का सुमिरन करके हम,
संग्राम भूमि में जाते हैं।
चुन चुन दुश्मन का वध करके,
चंडी को बली चढ़ाते हैं।
गुस्ताखी करता शत्रु अगर,
फिर दया दिखाना काम नहीं।
जब हम हथियार उठाते हैं,
दुश्मन का बचता नाम नहीं।