*मनः संवाद----*
मनः संवाद—-
09/05/2025
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
तुम जीवन पथ मीत बने, सपनों की बारिश हुई, मिला नया संसार।
कल तक भटक रहा था मन, अब तो चिर विश्रांति है, गढ़ते नव आकार।।
सब बातें सचमुच होते, तुम भविष्यवक्ता बने, देते सुख आधार।
तुम बिन जीवन सोचूँ क्यों, हर सपनों में है खुशी, हर पल है त्योहार।।
आलंबन बन कर आये, और नहीं दरकार है, तुम हो तो सब पूर्ण।
हर पन्ना है भरा हुआ, तेरी ही तस्वीर से, थमा हुआ आघूर्ण।।
पूरे होते सब सपने, अब विलंब होता नहीं, है अद्भुत ये तूर्ण।
संकट के रथ आते हैं, तुम्हें देखकर कह उठे, अब तो होंगे चूर्ण।।
सुंदर मेरा सपना है, जनम जनम के मीत तुम, लेता नव आकार।
जीवन गाथा तुमसे है, प्रीत रीत का बंध है, सुखमय यह आधार।।
हृदय पटल पर राजित हो, शीतल छाया प्रेम का, नहीं यहाँ व्यापार।
तुम पर वारी जाऊँ मैं, विमल भावरत हो सदा, होता हूँ निर्भार।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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