भारत माता के रखवाले

शेर के समान हैं, भारत माता के रखवाले।
कालों के भी काल हैं, प्राणों को हरने वाले।।
जननी भारत भूमि पर ,यदि शत्रु कदम बढ़ाता है।
हिन्द सेना के हाथों, पल में मारा जाता है।
भारत की सेना के जैसा, दुनिया में न शानी।
हमारी रक्षा के लिए, हँस कर देते कुर्बानी।
कड़ी धूप में सीमा पर, डटे रहते मतवाले।
कालों के भी काल हैं,प्राणों को हरने वाले।।
अपनी वीरता का, जग में झंडा फहराया है।
देश में घुसने वाले, शत्रु को मार भगाया है।
शत्रु सेना के सम्मुख, कभी न सर को झुकाते हैं।
निज वीरता, साहस से, शत्रु को मार गिराते हैं।
भारत माता के प्रहरी, सारे जग से निराले।
कालों के भी काल हैं, प्राणों को हरने वाले।।
प्राण देकर भी अपना, झंडा ऊँचा रखते हैं।
विरोधी गीदड़ भभकी से, कभी नहीं डरते हैं।
एक सिपाही भी अगर, सीमा पर अड़ जाता है।
खौफ खाकर शत्रु सेना दल, पीछे मुड़ जाता है।
कंधे पर डाले बंदूक,कर में थामे भाले।
कालों के भी काल हैं, प्राणों को हरने वाले।।
इनके सम्मुख रण में, कोई नहीं टिक पाता है।
जो भी टकराता है, बेमौत मारा जाता है।
सीमा की रक्षा से बढ़कर, कोई धर्म नहीं है।
देश की सेवा से बढ़कर,कोई कर्म नहीं है।
बाहर से कठोर मगर,दिल के हैं भोले-भाले।
कालों के भी काल हैं, प्राणों को हरने वाले।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)