तो फिर मैं क्यों सोचूं ऐसा तेरे बारे में

तू तो सोचती नहीं है ऐसा मेरे बारे में,
यह तेरी खुशनसीबी है कि,
मैं तुमसे प्यार करता हूँ ,
अपने परिवार की तरह,
तुमको पवित्र मन से इज्जत देता हूँ ,
मुझको बता तू कि,
कब तेरी ख्वाहिश पूरी नहीं की,
लेकिन क्या कभी तुमसे,
मुझको कोई खुशी मिली,
तो फिर मैं सोचूं ऐसा तेरे बारे में।
सच में पागल तो मैं हूँ ,
कि उनको नहीं चाहता,
जो मुझसे प्यार करते हैं,
मुझको देवता मानकर,
जो मुझपे कुर्बान होना चाहते हैं,
लेकिन तू तो चाहती है,
मुझको बर्बाद करना,
तो फिर मैं क्यों सोचूं ऐसा तेरे बारे में।
शायद तुमको शक है मुझ पर,
कि मैं गुलाम हूँ तेरे हुस्न का,
शायद तुमको बहुत ही अभिमान है,
अपनी सूरत और सुंदरता पर,
शायद तू सोचती है कि,
तेरा आशियाना शीशे से बना महल है,
क्या कभी तुमने कहा है,
कि मेरी जरूरत है तुमको जिंदगी में,
तो फिर मैं सोचूं ऐसा तेरे बारे में।
मैंने हमेशा तेरा ख्याल रखा है,
हमेशा तेरे दिले-जज्बात समझे हैं,
तुमपे कोई दबाव नहीं डाला है,
हमेशा तुमको आबाद रखा है,
सींचा है तुमको अपना चमन मानकर,
अपने लहू और पसीने से,
लेकिन कभी तुमने नहीं जलाये दीप,
मेरी सलामती के लिए मंदिर में,
तो फिर मैं क्यों सोचूं ऐसा तेरे बारे में।
नहीं मिलेगा तुमको मुझसे ज्यादा चाहने वाला,
कोशिश करके भी देख लेना,
हाँ, तुमको जरूर मिल जायेंगे,
लूटने और बदनाम करने वाले,
उनपे विश्वास करके भी देख लेना,
किसी और से प्यार करके भी देख लेना,
जब तुमको पसंद ही नहीं हूँ मैं,
तो फिर मैं क्यों सोचूं ऐसा तेरे बारे में।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)