हमको भी तारो गिरधारी

गीता ज्ञान धनंजय तारा।
तीनों लोक सुदामा वारा।
दर्शन देकर कुब्जा तारी।
हमको भी तारो गिरधारी।।
सत्य धर्म का पाठ पढ़ा दो।
ज्ञान ज्योति प्रभु हृदय जला दो।
भक्ति का प्रभु देकर वरदान,
निज चरणों से प्रीत लगा दो।।
छोटी सी है अरज हमारी।
हमको भी तारो गिरधारी।।
निज चरणों का दास बना लो।
हमको अपने गले लगा लो।
समझ पूत अपना मनमोहन,
निज चरणों में हमें सुला लो।।
नहीं चाहिए महल अटारी।
हमको भी तारो गिरधारी।।
मुरली की मृदु तान सुना दो।
बिखरा जीवन नाथ सजा दो।
प्यासी हैं दर्शन को अँखियाँ,
दिव्य रूप के दरश करा दो।।
काटो तन की विपदा सारी।
हमको भी तारो गिरधारी।।
सकल गुणों की खान आप हो।
सब वेदों का ज्ञान आप हो।
सुबह शाम जपते हैं माला,
ऋषि मुनियों का ध्यान आप हो।।
भव भय भंजन मंगलकारी।
हमको भी तारो गिरधारी।।
बने सारथी अर्जुन रथ के।
बनो प्रदर्शक मेरे पथ के।
वरद् हस्त प्रभु सर पर रख दो,
हार चुका मैं जग में मथ के।।
कृपा करो हम पर बनवारी।
हमको भी तारो गिरधारी।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)