221 2121 1221 212

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तकलीफ दे रही है बड़ी, रात क्या करूं,
हर शय तन्हा और डरा ,बात क्या करूं।
कांटे हैं बेवफा कोई उम्मीद क्या करे,
अब फूल कर रहे हैं खुराफात क्या करूं ।
सब पूछते हैं इतना तु खामोश कैसे हैं ,
धोखा दिये है अपने सवालात क्या करूं ।
शाख़ो पे फूल,पत्ता, परिंदा नहीं है अब ,
रहता नहीं है कोइ मक़ानात क्या करूं।
रहने लगा है शिकवा उसे दूरियों का यूं ,
जब प्रेम नहीं रहा मुलाकात क्या करूं ।
नूर फातिमा खातून नूरी
जनपद -कुशीनगर
उत्तर प्रदेश