*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
06/05/2025
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
फँसे पड़े जंजाल बहुत, नहीं निकल सकते यहाँ, राजा हो या रंक।
जब से पैदा यहाँ हुआ, इस चक्कर में हैं पड़े, खेल खिलाते अंक।।
सबके सर पर नाच रहा, तांडव करता मृत्यु नित, फैला है आतंक।
धँसते जाते दलदल में, सब कोशिश बेकार है, ऐसा गहरा पंक।।
निडर नहीं कोई जग में, डरे हुए सब लोग हैं, हँसता है यमदूत।
नहीं बचे जोगी यति जन,साधु संत गुरु मौलवी, सद्गुरु या अवधूत।।
बिना विचारे दबोचता, ले घसीट जाता कहाँ, करे अजब करतूत।
जिस तन इतना गर्व करे, तुझे पता हो बावरे, केवल बचे भभूत।।
उस ओर चलें अब हम तुम, जिधर जमाना टोकता, रहता एक अछूत।
बैठा कोई कब से क्यों, नहीं जानते हैं उसे, कहते हैं अवधूत।।
करे साधना मरघट पर, मुर्दा ऊपर बैठकर, करता है करतूत।
मृत्यु देवता है यह शिव, रहे सदा एकांत में, मलता देह भभूत।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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