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5 May 2025 · 1 min read

*मनः संवाद----*

मनः संवाद—-
05/05/2025

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

उसे स्वर्ग कह सकते हो, रिश्तों की बुनियाद में, जो अटूट विश्वास।
ऐसे ही घर में करते, पंचदेव अनुपम कृपा, हो स्वर्गिक आभास।।
जो शिक्षा संस्कार धनी, आपस गाढ़ी प्रीति हो, बढ़ती और मिठास।
सभी कार्य शुभ समय घटे, खिला-खिला हर चेहरा, हर पल हो उल्लास।।

कभी नहीं दीवार बने, पति पत्नी के बीच में, जो हो सामंजस्य।
निज धर्म जहाँ पालन हो, मनमुटाव होते नहीं, हर्षित युगल सदस्य।।
इक दूजे पर हो आस्था, अंतर्मन सम्मान हो, करते हृदय नमस्य।
जीना सुखमय चाह करो, याद रहे कोई कभी, रखना नहीं रहस्य।।

हे काव्य सुंदरी आओ, नवल छंद जीवंत कर, कर मुझको अनुप्राण।
शब्द सभी साकार करो, भाव प्रवणता से भरो, जीवन नवनिर्माण।।
चले तूलिका रसमय हो, चिंतन सदा अपूर्व हो, लिख दे प्रेम पुराण।
नवयुग को दे परंपरा, ऐसी रचनाधर्मिता, दें सब नव्य प्रमाण।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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