38) पानी को देखो बरस रहा, यह दुनिया कितनी प्यारी है (राधेश्यामी
पानी को देखो बरस रहा, यह दुनिया कितनी प्यारी है (राधेश्यामी छंद)
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1)
पानी को देखो बरस रहा, यह दुनिया कितनी प्यारी है।
जाने कितने युग बीत गए, यह ऋतुओं का क्रम जारी है।।
2)
सोचो तो अचरज लगता है, जल काले बादल बरसाते।
पानी गिरता है नभ से जब, ताज्जुब में सब पड़-पड़ जाते।।
3)
यह ठंडी हवा सुहाती है, ठंडक गर्मी में आती है।
जाने यह हवा कहॉं से है, जादू जैसी कहलाती है।।
4)
बरसात तुम्हारा क्या कहना, ऑंखों को शांति दिलाती हो।
जल की फुहार से ठुमक-ठुमक, ज्यों नई सृष्टि रच जाती हो।।
5)
ऑंखों को बंद किए अक्सर, कानों से तुमको सुनता हूॅं।
क्या सुर लय ताल तुम्हारी है, अद्भुत जब तुमको गुनता हूॅं।।
6)
अभिनंदन स्वीकारो वर्षा, तुम सब ऋतुओं की रानी हो।
तुम जीवनदाई धरती पर, कुदरत की मधुर कहानी हो।।
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रचयिता: रवि प्रकाश