कब आओगे
सुनो…
कब आओगे तुम..
तुम बिन…
सावन के कुछ गीत अधूरे हैं..
सर्द की लम्बी रातों में…..
जो करनी थी ढेर सारी बातें…
सुबह सूरज के साथ उठकर…
मीठी चाय और तुम….
बोलो ना…..
कब आओगे तुम….
..
इंतजार करना अच्छा लगता है…
हमे तुम्हारा…
क्योंकि, इसी बीच बनाते हैं हम….
कुछ ख्याली पुलाव….
शायद जो उम्मीदें हैं तुम से…
कुछ पुरानी यादें….
जिसमें होते हैं…
सिर्फ हम और तुम…
तो अब बोलो ना…
कब आओगे तुम…
..
तुम्हारी याद हमे….
रातों को जगाती है…
हर एक साँस…
तेरा नाम बुलाती है…
तुझे पाकर, तेरा होना…
ये एहसास है मुझमें…
उन एहसासों की हकीकत के खातिर….
अब बोलो भी…..
कब आओगे तुम…
@SakshiTripurariSingh