सच्चा सुख
अगर मैं लिख सकती भाग्य
अपनी ही कलम से
तो क्या लिखती ?
शायद
एक सुखी परिवार
जिसकी शांति
मन को स्वस्थ तो रखे
परन्तु
न करे दूर बेचैनियों से
जहाँ सादगी और सच्चाई
सहजता से
समयी हो जीवन में
कुछ ऐसे
कि मन
ज्ञान की पिपासा से लबालब भर जाए
जहाँ स्नेह का आधार
हो आपसी समझ
फूटें उसकी शाखायें
घर से कुछ इस तरह कि पहुँचे
मानव मात्र तक
हे ईश्वर
वैसा परिवार तुमने धरती पर कहीं नहीं बनाया
परन्तु हर शिशु
अपनी नासमझी के
धुँधले में खोलता है नयन
कूछ ऐसे ही परिवार के लिए ।
——शशि महाजन