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4 May 2025 · 1 min read

*मनः संवाद----*

मनः संवाद—-
04/05/2025

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

शिक्षित होना आवश्यक, दुनियादारी के लिए, अनपढ़ है अभिशाप।
हर पग पर ठोकर खाता, इस उन्नत संसार में, झेल रहा अनुताप।।
अपनी किस्मत पर रोता, बैठ किसी एकांत में, करता एकालाप।
कब जाने किस ओर मिले, आकस्मिक पथ आपदा, दे अपनी पदचाप।।

अगर नौकरी नहीं मिली, होना नहीं निराश तू, समझ नया संकेत।
बनना नहीं तुझे नौकर, बनना है मालिक तुझे, रहना यहाँ सचेत।
कोशिश कर माहौल बना, करना इतनी काबिलियत, तू बन जा साकेत।
इस जग का तू पालक बन, सबको तू ही ज्ञान दे, कर सुकर्म चल खेत।।

तुम मन की अति भोली हो, निष्ठुर जग चालाक है, कैसे होगी जीत।
छल बल कल नहीं जानती, इसीलिए तुम हारती, नहीं समझती रीत।।
आओ तुम्हें बताऊँ मैं, जीत कहाँ कैसे मिले, निर्मल भाव पुनीत।
कठिन करो अभ्यास सदा, खुली रखो मन खिड़कियां, करो विषय से प्रीत।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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