गीतिका
विधा -गीतिका छंद
मापनी -212-212, 212-212
समान्त -आओ
पदान्त – कभी
झूठ बोलो न झूठे सराहो कभी
सत्य का साथ कुछ यूँ निभाओ कभी।
प्यार से बात करना जरूरी समझ,
दिल किसी का यहाँ मत दुखाओ कभी।
दीन दुखिया मिले कष्ट उनके हरो,
आसरा प्यार का तुम जताओ कभी।
भोग छप्पन लगाते सदा ईश को,
भूख मजदूर की भी मिटाओ कभी।
जो न चाहे तुम्हें दूर उनसे रहो,
दर्द अपना वहाँ मत बताओ कभी।
आँख के अश्रु को आँख में रोक लो,
ज़िंदगी को हँसी में बिताओ कभी।
कर्म ‘सीमा’ रखो पाप से भी बचो,
बोझ मन से सकल यूँ हटाओ कभी।
सीमा शर्मा ‘अंशु’