गीतिका
गीतिका
समांत-आम
पदांत-तू
मापनी-2122 2122 212
ढूंढता फिरता कहाँ श्री राम तूं।
झांक ले अपना जरा मन धाम तू।।
साफ नीयत रख चला चल शांत रे,
रब सहारे सब बनाना काम तू।
लोग अवगुण खोजते तो खोज लें,
लक्ष्य पाकर ही दिखा परिणाम तू।
कर्म करना शुद्ध तज मन बोझ को,
हो न जाना रे कभी बदनाम तू।
खोज ले दुनियां न कोई है सगा,
लड़ अकेला दर्द के संग्राम तू।
आँसुओं को नैन में ही रोक ले,
बैठ मत मन हार कर नाकाम तू।
राह के कंटक मिटेंगे सब्र कर,
जाप प्रभु को रोज आठों याम तू।
पार होगी नाव भी संसार की,
भक्ति की पतवार बस इक थाम तू।
सीमा शर्मा ‘अंशु’