ग़ज़ल
रदीफ़- आ गये
क़ाफ़िया – अर की बंदिश
बह्र – 212 212 212 212
ख्वाब टूटे कई अब नज़र आ गये।
हम कहाँ थे खड़े अब किधर आ गये।।
भूल खुद को जिये गैर के ही लिए,
पीर का आज लड़ के समर आ गये।
चाह ऐसी रखूं मैं गगन में उडूं,
नोंचने क्रूर सैयाद पर आ गये।
आँख में ख्वाब रड़के अभी भी बहुत,
दर्द के साथ रखने सबर आ गये।
रीत प्याले गए प्रीत के ही सभी,
छोड़ कोई हमीं ही कसर आ गये।
पंख आजाद हैं कैद में फिर पड़े,
आज अंजाम हमको नज़र आ गये।
छोड़ पाये न ‘सीमा’ शराफत कभी,
ज़िंदगी का निभा कर सफर आ गये।
सीमा शर्मा