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4 May 2025 · 1 min read

ग़ज़ल

रदीफ़- आ गये
क़ाफ़िया – अर की बंदिश

बह्र – 212 212 212 212

ख्वाब टूटे कई अब नज़र आ गये।
हम कहाँ थे खड़े अब किधर आ गये।।

भूल खुद को जिये गैर के ही लिए,
पीर का आज लड़ के समर आ गये।

चाह ऐसी रखूं मैं गगन में उडूं,
नोंचने क्रूर सैयाद पर आ गये।

आँख में ख्वाब रड़के अभी भी बहुत,
दर्द के साथ रखने सबर आ गये।

रीत प्याले गए प्रीत के ही सभी,
छोड़ कोई हमीं ही कसर आ गये।

पंख आजाद हैं कैद में फिर पड़े,
आज अंजाम हमको नज़र आ गये।

छोड़ पाये न ‘सीमा’ शराफत कभी,
ज़िंदगी का निभा कर सफर आ गये।

सीमा शर्मा

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