ग़ज़ल
ग़ज़ल
बह्र – 212 212 212 212
छोड़ कर आपका हम शहर आ गये।
इश्क़ का रख अधूरा सफ़र आ गये।।
आपसे जब मुहब्बत हुई थी सनम,
खूबसूरत नज़ारे नज़र आ गये ।
बेखुदी में उठे थे कदम आप तक,
मान कर हम तुम्हें हमसफ़र आ गये।
प्यार मुश्किल भुलाना पता ही न था,
दूरियों को बढ़ा कर मगर आ गये।
चाहतों का हुआ हाल क्यों है बुरा,
नाम पर इश्क़ के लाख डर आ गये।
चैन मिलता नहीं रात दिन है तड़प,
दर्द सारे जहाँ के इधर आ गये।
पार ‘सीमा’ हुई हिज़्र की अब बड़ी,
सब्र का सोख जैसे ज़हर आ गये।
बेखुदी-बेखबरी
हिज़्र-वियोग
सोख-पीना
सीमा शर्मा ‘अंशु’