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4 May 2025 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

बह्र – 212 212 212 212

छोड़ कर आपका हम शहर आ गये।
इश्क़ का रख अधूरा सफ़र आ गये।।

आपसे जब मुहब्बत हुई थी सनम,
खूबसूरत नज़ारे नज़र आ गये ।

बेखुदी में उठे थे कदम आप तक,
मान कर हम तुम्हें हमसफ़र आ गये।

प्यार मुश्किल भुलाना पता ही न था,
दूरियों को बढ़ा कर मगर आ गये।

चाहतों का हुआ हाल क्यों है बुरा,
नाम पर इश्क़ के लाख डर आ गये।

चैन मिलता नहीं रात दिन है तड़प,
दर्द सारे जहाँ के इधर आ गये।

पार ‘सीमा’ हुई हिज़्र की अब बड़ी,
सब्र का सोख जैसे ज़हर आ गये।

बेखुदी-बेखबरी
हिज़्र-वियोग
सोख-पीना

सीमा शर्मा ‘अंशु’

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