ग़ज़ल
ग़ज़ल
बह्र-212, 212,212,2
दर्द दिल में छुपा के रखा है।
चेहरे पर तबस्सुम सजा है।।
अब सुनाए किसे बात अपनी,
कौन लगता यहां पर सगा है।
बात करता बशर बेरुखी से,
प्रेम का राग भूला हुआ है।
पाक होते नहीं दिल सभी के,
शख्श कोई विरल ही भला है।
बोलते हैं बुरा लोग “सीमा”
नेकियों की मिली यह सजा है
सीमा शर्मा