ग़ज़ल
बह्र- 1222-1222-122
रदीफ़- नहीं है
क़ाफ़िया – आ की बंदिश
बुढापा छोड़ कर जाता नहीं है ।।
सहे दुख दर्द सब चारा नहीं है।।
बहुत सुंदर नजारा हैं जहां का,
मगर माँ बाप सा प्यारा नहीं है।
सताना ना कभी उनको ज़रा भी,
दुआओं का मिले मेवा नहीं है।
चले जाएं जहाँ से जब याद आएं,
दिखे उनका कहीं साया नहीं है।
बुजुर्गों की करो सेवा प्यार दे कर,
खुशी के अंत की ‘सीमा’ नहीं है।
सीमा शर्मा ‘अंशु’