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4 May 2025 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल
1222,1222,1222,1222

मिले जो प्यार रिश्तों में, समझ गुलजार है जिंदगी।
घुलें नफरत दिलों में तो,लगे इक खार है जिंदगी।।

न इसको चाहना इतना,कभी अपनी नहीं होगी,
बड़ी कम उम्र है इसकी, गुलों का हार है जिंदगी।

हँसाती है कभी तो ये,कभी दे आँख में आँसू,
खुशी से जी बशर इसको,चले दिन चार है जिंदगी।

यहाँ गम थोक में मिलता, खुशी मिलती ज़रा सी है,
यही तो फलसफा इसका, समझ से पार है जिंदगी।

करें सब चाह जीवन में, मिले अंबार दौलत का,
खुदा से लौ लगा ‘सीमा’, उसी की यार है ज़िंदगी।

सीमा शर्मा

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