ग़ज़ल
बह्र – 2121-2212-22
रद़ीफ -शायद
क़ाफ़िया -ई
इश्क़ चार दिन की हँसी शायद।
इक अजार है दिल लगी शायद।।
याद अब नहीं वो मुझे करता,
दिल नशी हुआ अजनबी शायद।
राह इश्क़ की यार है मुश्किल,
जो चले रहे वो दुखी शायद ।
क्यों दुखा रहे लोग दिल ऐसे,
बेहिसाब मिलती खुशी शायद।
आँख अश्क से छलछलाई है,
बेवफा मोहब्बत मिली शायद।
लिख दिया कभी नाम तेरा था,
वो किताब दिल की फटी शायद।
गम सता रहा है तुझे मेरा,
फिक्र है जरा सी बची शायद।
गर मिले वफ़ा को वफ़ा तो फिर,
शानदार हो ज़िंदगी शायद।
दूर इश्क़ से तुम रहो ‘सीमा’,
ख्वाब टूट जाते सभी शायद।
अजार-दर्द ,तकलीफ
दिलनशीं-दिल में उतरने वाला
सीमा शर्मा ‘अंशु’