*विधा -महाभुजंगप्रयात सवैया*
विधा -महाभुजंगप्रयात सवैया
(यगणात्मक )
विधान= 24 वर्ण = यगण X 8
या, 122-122-122-122,122 -122-122-122
सृजन शब्द —- प्रतीक्षा
बुढापा सताता कहाँ ये बताते, दुखों को छिपाते कभी ना जताएं।
लिखा दर्द माँ बाप के चेहरों पे,अकेले पड़े ये खुशी ही मनाएं ।।
प्रतीक्षा उन्हें आज भी है कभी तो, सजे द्वार सूने दिवाली सजाएं।
प्रवासी हुए जो सदा के लिए वो,हमारे दिलों में बसे लाल आएं।।
घरौंदा बनाया बड़े प्यार से था,बगीचे दिलोंजान से थे लगाये।
कुमाने लगे फूल उम्मीद के हैं, तके राह कोई गुलों को बचाये।।
उड़े हैं परिंदे बने वो विदेशी, कहे कौन आके बसेरा जमाये।
रहे आँख माँ बाप की ही भरी सी,बहे अश्रु धारा दिखाते लजाये।
बिताई कभी रात यादों सहारे, कभी देख फोटो न फूले समाए।।
समा आखिरी में दुखों से कराहे, पड़े रोग में तो पुकारें पराए।
कमाले भले वो करोड़ो खजाने,कहो काम के क्या पिता माँ सताए।
करें प्रीत आशीष मोती उठाये, कमाई चलो आज थोड़ी कमाए।।
सीमा शर्मा