अरविंद सवैया
अरविंद सवैया छंद सगणात्मक
112 112 112 112 ,112 112 112 112 1
सृजन शब्द अनुराग
अनुराग भरा हिय भीतर में,फिर भी गलियां मन की सुनसान।
प्रिय पास रहें अब चाह करूँ, बस एक यही मन का अरमान।
मधुमास भरे दिन हैं तुमसे, तुम जीवन की सजना
पहचान।
नित राह निहार रही सजना,दिन बीत रहे तुम हो
गुमनाम।
नित याद करूँ तुमको पिय मैं,उर में चुभती बतियाँ
बन शूल ।
दिल पाहन करके अपना,दिन रात गए सब
साजन भूल।।
सपने सब राख हुए अब तो, मन दर्पण पर जमती
दुख धूल।
उजड़ी- उजड़ी बगिया मन की,मिल खाक गया
अब जीवन फूल।।
मन भूल गया खिलना हँसना, अब नैन बहे नित
ही जलधार।
तरसा करती अब हैं अखियाँ, सपने मरते मन
द्वार हजार।।
कहते सुनते हर बात कभी, अब साथ कहाँ रहता
पिय प्यार।
निकले अब साँस यही कहती, बिन प्रेम गई अब
जीवन हार।।
सीमा शर्मा