जीवन क्या है

गीत
जीवन क्या है
आंख का मोती
कभी हँसाये
कभी रुलाये
और नहीं बस
मुझको कहना
क्या परिभाषा
कौन बतलाए..
सभी खड़े हैं
चौराहों पर
भीड़ का हिस्सा
भीड़ ही जाने
कुछ तो हुआ जो
भटक गए हम…
कौन यहां पर
राह दिखलाए…
हर सीने में
दुख का दरिया
ढूंढ रहा है
सुख की नदिया
पागल है जो
करे कामना….
कहां सागर है
कौन इतराये…
कुछ तो बोलो
कुछ समझो भी
मौन उदासी
रवि-चंदा सी
उपमा सारी
बस कागज पर
जाने कितने
पंख सजाये..
कह दूं कैसे
मन की बातें
कटा फटा जब
ख़त का कोना
घाटी- घाटी
दुख सीने में
व्याकुल अर्जुन
कौन बचाए..
डर सताए..!!
हाथ सेंकते
जो अंगारे
जले बुझे से
मन के द्वारे
क्या होगा पल
कोइ न जाने
निष्ठुर जीवन
कब शर्माए..
पूछा मैंने…
जीवन क्या है
पल दो पल की
आँख मिचौनी..
जिससे पूछा
वो घबराया..
यक्ष प्रश्न से
जी कतराये..
जी बहलाये।।
युद्ध करवाए..!!
सूर्यकांत