मां-बाप
मां-बाप
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मां-बाप की सेवा करना धर्म नही,
अपितु कर्तव्य है, फर्ज और नैतिक जिम्मेदारी है।
धर्म तो कहता है मां-बाप अगर अधर्मी है तो आप धर्म के साथ खड़े रहो, मां-बाप जाए,,,,,तेल लेने।
मेरा मानना है मां-बाप चाहे अधर्मी है चाहे पापी है, संतान को हमेशा मां-बाप के साथ ही खड़े रहना चाहिए।
मां-बाप की आज्ञा का उलंघन करना घोर पाप है।
जब हम ये मान रहे है कि मां-बाप से बड़ा भगवान नही है, मां-बाप से बड़ा गुरु भी नही है , तो फिर अधर्मी मां-बाप की आज्ञा का उलंघन करना अधर्म कैसे है?
मां-बाप तो मां-बाप ही होते है उनकी जगह तो इस संसार में कोई ले ही नही सकता ,मां-बाप चाहे धर्मी हो या फिर अधर्मी दोनों ही परिस्थितियों में उनका मान और सम्मान उच्च ही होता है किसी भी परिस्थिति में मां-बाप का कद कभी गिरना नही चाहिए।
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”