प्रकृति की पूजा, मानवता की आराधना
मुख्य शीर्षक: “प्रकृति की पूजा, मानवता की आराधना”
(एक सर्वधर्म सद्भाव एवं पर्यावरण संरक्षण पर आधारित प्रेरक कहानी)
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दृश्य संयोजन (Stage Setting):
मंच पर एक ओर धरती माता की मूर्ति (या प्रतीक), चारों ओर विभिन्न धर्मों के प्रतीक चिन्ह (ओम, क्रॉस, चाँद-सितारा, खंडा, धर्मचक्र, अग्नि चिन्ह आदि)। एक ओर एक पेड़ या उसका मॉडल। बैकग्राउंड में मधुर संगीत: “वैष्णव जन तो” / “ईश्वर अल्लाह तेरो नाम…”
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चरित्र:
1. वाचक (Narrator) – सूत्रधार
2. सौरभ – युवक, धरा धाम का विचारक
3. धरा (धरती माता) – मानवी रूप में
4. अमन – मुस्लिम युवक
5. डेविड – ईसाई युवक
6. कविता – सिख लड़की
7. ताशी – बौद्ध युवा
8. छाया – वृक्ष की आत्मा
9. भीड़ (2-3 लोग) – धर्म के नाम पर लड़ते हुए
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[प्रारंभ]
(मंच पर अंधेरा। धीरे-धीरे प्रकाश फैलता है। धरती माता मंच के मध्य बैठी हैं। वाचक प्रवेश करता है।)
वाचक (गंभीर स्वर में):
“यह कहानी है उस धरती की… जिसे हम सब अपनी कहते हैं।
यह कहानी है उस धर्म की… जिसे हम सब अपने-अपने रूप में पूजते हैं।
पर जब धरती रोती है, और धर्म मौन हो जाता है…
तब जन्म होता है धरा धाम जैसे संकल्पों का।”
(प्रकाश बढ़ता है। कुछ लोग लड़ते हुए प्रवेश करते हैं।)
भीड़:
“मेरा धर्म बड़ा!”
“नहीं! मेरी जात सबसे ऊँची!”
“ईश्वर मेरा है, तुम्हारा नहीं!”
(एक-दूसरे को धकेलते हैं)
(तभी सौरभ प्रवेश करता है, शांत भाव में।)
सौरभ:
“रुको! क्या तुम्हारा ईश्वर सिर्फ तुम्हारा है?
क्या धर्म हमें बाँटने आया है?
क्या हम यह भूल चुके हैं कि पहले हम इंसान हैं?”
(भीड़ चुप। धरती माता धीरे-धीरे बोलती हैं।)
धरा (दुखी स्वर में):
“मैं वह धरती हूँ जिस पर सभी धर्मों ने जन्म लिया।
मैंने तुम्हें अन्न दिया, जल दिया, छाया दी…
और तुमने मुझे जहर दिया – युद्ध, घृणा और प्रदूषण।”
(प्रवेश – वृक्ष की आत्मा “छाया”)
छाया (दर्द में):
“मैं एक वृक्ष हूँ…
जो कभी पूजा गया…
पर अब मेरे बच्चे काट दिए गए।
धर्म के नाम पर मंदिर बने,
पर पेड़ काट कर!”
(सौरभ आगे बढ़ता है)
सौरभ:
“धर्म वह हो जो एकता सिखाए,
प्रकृति वह हो जिसे पूजा जाए।
आओ एक ‘धरा धाम’ बनाएं –
जहां सब धर्म मुस्कराएं,
जहां हर पेड़ को भी भगवान माना जाए।”
(अब विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधि प्रवेश करते हैं – अमन, डेविड, कविता, ताशी)
अमन:
“इस्लाम कहता है – धरती अल्लाह की अमानत है।”
डेविड:
“बाइबिल कहती है – पृथ्वी को बचाना ईश्वर की सेवा है।”
कविता:
“गुरुग्रंथ साहिब में लिखा है – हर जीव में रब बसता है।”
ताशी:
“बुद्ध कहते हैं – करुणा ही धर्म है।”
(सभी मिलकर पेड़ के पास दीप जलाते हैं)
सभी एक स्वर में:
“प्रकृति को पूजा, मानवता की आराधना!”
“धर्म वो, जो जोड़ता है – तोड़ता नहीं।”
“धरती एक है, ईश्वर एक है – हम सब एक हैं!”
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[अंतिम दृश्य:]
(धरती माता मुस्कुराती हैं, वातावरण हरियाला होता है, प्रकाश स्वर्णिम हो जाता है)
वाचक (नम्र स्वर में):
“धरा धाम कोई स्थान नहीं…
वह एक संकल्प है…
एक विचार है…
जहां हर धर्म अपने ईश्वर को देखे…
और हर इंसान, दूसरे इंसान में खुदा को पहचाने।”
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[समाप्ति गीत या पंक्तियाँ]:
(सभी मिलकर स्वर में – तालियों के साथ):
“ना मंदिर, ना मस्जिद की दीवार चाहिए,
हमें तो बस हर दिल में प्यार चाहिए।
पेड़ों की छांव हो, इंसानियत की बात हो,
धर्म वही जो धरती से जुड़ी बात हो!”
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[पर्दा गिरता है]