*नुक्तों के प्रयोग से हिंदी का उर्दूकरण अनुचित*
नुक्तों के प्रयोग से हिंदी का उर्दूकरण अनुचित
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उर्दू के विद्वान देवनागरी में लिखते समय उर्दू के शब्दों का जब प्रयोग करते हैं तो नुक्ता अवश्य लगाते हैं। दूसरी ओर हिंदी के ऐसे लेखक हैं जो न तो उर्दू की लिपि को लिख सकते हैं और न ही पढ़ सकते हैं। उर्दू का उनका ज्ञान केवल बोलचाल के शब्दों तक सीमित है। ऐसे हिंदी लेखक जब उर्दू के शब्दों का प्रयोग करते हैं तो वह नुक्ता नहीं लगाते। बस यहीं पर हिंदी लेखकों को आलोचना का शिकार होना पड़ता है।
उर्दू के विद्वान नुक्ता न लगाए जाने के कारण हिंदी लेखकों के लेखन में गलतियॉं बताते हैं, ठीक करने की सलाह देते हैं अर्थात अच्छा-भला लेखन करने के बावजूद हिंदी का लेखक दोषी ठहरा दिया जाता है। होना यह चाहिए कि हिंदी के लेखन में उर्दू के प्रचलित शब्दों को हिंदी के शब्द मानकर ग्रहण किया जाए और उसमें नुक्ता लगाने की बाध्यता नहीं हो। न केवल बाध्यता नहीं हो, बल्कि नुक्ता लगाने को एक दोष के रूप में ग्रहण किया जाए।
अगर हम हिंदी लेखन में उर्दू के नुक्ता लगाने के कार्य को किसी भी रूप में बढ़ावा देते हैं तो यह हिंदी के पाठ्यक्रम में उर्दू को थोपने का कार्य माना जाएगा। यह हिंदी का उर्दूकरण कहलाएगा। इसका अभिप्राय यह होगा कि दोष-रहित हिंदी सीखने के लिए हर व्यक्ति को उर्दू का ज्ञान अनिवार्य होगा।
जब हम हिंदी में कुछ लिखते हैं तो सहज प्रवाह में उर्दू के शब्द हमारे दिमाग में आते रहते हैं। हम उर्दू के प्रचलित शब्दों को अलग नहीं कर सकते। सैकड़ो वर्षों से हिंदी भाषी लोग उर्दू के माहौल में जीते रहे हैं। उनके चारों तरफ उर्दू के शब्द बिखरे हुए हैं। उन शब्दों को हिंदी में लेखन करते समय हम खुशी-खुशी प्रयोग करेंगे। इससे हमारे लेखन में प्रवाह आता है और बोलचाल की भाषा का स्वरूप गठित होता है।
संक्षेप में गीत, गजल, दोहे, कहानी, लेख आदि लिखते समय हिंदी लेखकों को नुक्ते लगाने की न केवल आवश्यकता नहीं है बल्कि उन्हें नुक्ता न लगाने के लिए प्रेरित भी किया जाना चाहिए। परीक्षा में हिंदी लेखन में नुक्तों के प्रयोग करने पर परीक्षार्थी के अंक काटे जाने चाहिए। तभी हम हिंदी को उर्दूकरण के दोष से मुक्त रख सकेंगे।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
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