ख़तों में भर कर एहसासों को अपने

ख़तों में भर कर एहसासों को अपने
रात की उन्नीद पलकों से बुहारा होगा,
किसी दरख़्त में पड़कर सिसकते रूह ने
कतरा-कतरा हर लब्ज़ को पुकारा होगा।
न जाने कौन से दराज़ में अटके हुए होंगे
तुम्हारे ख़त मगर…… कह दो!
कि अब मिलन फिर तुमसे दुबारा होगा।
शुभम आनंद मनमीत