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29 Apr 2025 · 1 min read

परशुराम जयंती – दोहा छंद

29.04.2025
परशुराम जयंती- दोहा छंद

चार सनातन युग शुभद, करते ग्रंथ बखान।
कालखंड सबके अलग, करे सभी गुणगान।।०१।।

सतयुग का प्रस्थान था, त्रेतायुग तैयार।
महिप सभी निरंकुश थे, करते अत्याचार।।०२।।

शुक्ल पक्ष बैशाख की, शुभद तृतीया मान।
ग्रीष्म किया था आगमन, बसंत का प्रस्थान।।०३।।

अक्षय तृतीया को हुआ, उच्च नवग्रह योग।
नारायण के अंश का, बना शुभद संयोग।।०४।।

विष्णु लिए अवतार थे, जग में षष्ठम बार।
परशुराम के रूप में, मानव तन स्वीकार।।०५।।

पिता जमदग्नि जानिए , मात रेणुका नाम।
क्रोध रूप धारित किए, हरने पाप तमाम।।०६।।

मोहक बालक रूप में, करते कौतुक रोज।
घुँघराले सिर बाल में, जैसे लगें मनोज।।०७।।

दुष्ट महिपाल का किए, हनन इक्कीस बार।
क्षत्रिय का संहार कर, हरण किए भू भार।।०८।।

पिता आदेश जब मिला, माता का सिर हन्य।
मातृ-हंता नाम धरे, परशुराम थे धन्य।।०९।।

चिरंजीव वे हो गये, त्रेता द्वापर पार।
ऋषि परंपरा से दिए, जीवन को आधार।।१०।।

तप बल धारण कर बने, महा मनस्वी सिद्ध।
रहे युगांतर में सदा, योद्धा विप्र प्रसिद्ध।।११।।

जन्म लिए भृगु वंश में, भार्गव पाए नाम।
क्रोध दमन कर शस्त्र को, त्याग दिए मिल राम।।१२।।

परशु दिव्यास्त्र विद्युदभि, उनका प्यारा अस्त्र।
भीष्म, द्रोण सह कर्ण को, सिखलाया था शस्त्र।।१३।।

अनसूया अकृतवण थे, उनके शिष्य महान।
लोपामुद्रा को दिए, विदुषी नारी मान।।१४।।

अभी तपस्या लीन हैं, ध्यान मग्न अनुराग।
कल्कि अवतार हो तभी, जाएंगे वे जाग।।१५।।

गुरुपद धारण कर उन्हें, शस्त्र ज्ञान का दान।
आने वाले हैं तभी, पाप चढ़े परवान।।१६।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
सियारामपुर पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978

Language: Hindi
30 Views
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